मंगलवार, 26 जनवरी 2010

नज़्म

उस गणतंत्र के नाम, जो गण का तो रहा नहीं, तन्त्र का हो कर रह  गया. गण भौंचक्के से तन्त्र के आगे सर झुकाए, गणतन्त्र दिवस को हसरत भरी निगाहों से देखते हैं. सोचते हैं, जाने कब वो दिन आएगा जब वास्तविक 
 'गणतन्त्र' होगा,
हम सब के लिए..... छोड़िए, नज़्म पढ़िए 

दाना नहीं है पेट में, खुशियाँ मनाइए
छब्बीस जनवरी है ये छब्बीस जनवरी
इक बार और जोर से नारा लगाइए

मंहगाई बैठी सब को परीशां किए हुए
सरकार कह रहे हैं कि कुछ और सब्र हो
बैठे रहें तस्व्वुरे-जानां किए हुए

कानून, संविधान- हरे राम राम राम
बाहर की बात छोड़िए खतरे तो घर में हैं
है कोई सावधान- हरे राम राम राम

इंसानियत जो मोम थी, वो काठ की हुई
हर शख्स थकने लगता है इक उम्र आने पर
जम्हूरियत भी आज चलो साठ की हुई.

मंगलवार, 19 जनवरी 2010

वसंत पंचमी

विद्या की देवी सरस्वती की आराधना का पुनीत पर्व एवं ऋतुराज वसंत के आगमन पर आप समस्त स्नेहीजनों को शुभकामनाएँ .
ब्लाग-जगत में हम जिस प्रेम भावना के साथ हैं, प्रार्थना है कि वसुंधरा का प्रत्येक प्राणी  जाति-धर्म-भाषा से ऊपर उठ कर उसी निर्मल भाव से संसार को प्रेम-ज्योति से अवलोकित करे.


सोई तकदीर जगाने को वसंत आया है
प्यार के फूल खिलाने को वसंत आया है
अपनी आवाज़ के सुर आज मिलाओ इससे
इक नया राग सुनाने को वसंत आया है. 
                        


गुरुवार, 7 जनवरी 2010

गजल - एक बार फिर

क्या हम इस बात पर गुमान करें 
मुल्क में खुदकुशी किसान करें 

अपनी खेती उन्हें पसंद आई                  
आइए,  मिल  के कन्यादान करें 

सारी दुनिया को हम से हमदर्दी 
जैसे बगुले नदी पे ध्यान करें 

देश, मजहब, समाज, खुद्दारी 
काहे सांसत में अपनी जान करें 

कर्ज़ से गर निजात चाहिए, तो 
आप सोने की गाय दान करें 

इस तरफ आदमी, उधर कुत्ता 
बोलिए, किस को सावधान करें!