बुधवार, 12 अगस्त 2009

गजल- 66

जब जब टुकड़े फेंके जाते हैं
कुत्ते पूंछ हिलाते जाते हैं

हाथ हिला कर कोई चला गया
लोग खुशी से फूले जाते हैं

चेहरा बदला, तख्त नहीं बदला
चेहरे क्या हैं, आते - जाते हैं

इल्म, शराफत हैं कोसों पीछे
सिर्फ़ मुसाहिब आगे जाते हैं

सत्य, अहिंसा, प्यार, दया, ममता
इस रस्ते बेचारे जाते हैं

जीना है तो यह फन भी सीखो
कैसे तलुवे चाटे जाते हैं

सरकारी विज्ञापन पढ़िये तो !
अब भी कसीदे लिक्खे जाते हैं

झंडा, जश्न, सलामी, कुछ नारे
हम नाटक दुहराते जाते हैं।